lमालिक आलियाखिन और उसकी पत्नी - गिरजाघर में प्रार्थना सुनने जाने के लिए तैयार हो रहे थे।
मालिक के जाते ही उसने अलमारी से स्याही की दवात (inkpot), घिसी निबवाला होल्डर निकाला और कागज़ को ज़मीन पर फैलाकर लिखने बैठ गया।प्यारे दादा कांस्टेनटाइन, मेरे न पिता हैं न माँ, सब कुछ आप ही हैं। आपको क्रिसमस की शुभकामनाएँ!
वेनका की आँखों के आगे अपने दादा कांस्टेनटाइन का चित्र स्पष्ट हा आया। छाटा-सा दुबला-पतला पैंसठ साल का वृद्ध। भेड़ की खाल का लंबा कोट पहनकर, परिश्रम और चुस्ती से कोठी की चौकीदारी है कांस्टेनटाइन।
वेनका को लगा, हो न हो, कोसों दर बैठे उसके दादा इस समय चर्च के बाहर अपने बूढ़े साथियों से हँसी-मज़ाक कर रहे होंगे।
उसने खिडकी से बाहर देखा - रात अँधेरी थी, फिर भी घरों की सफ़ेद छतें, चाँदी-से चमकते पेड़ और बरफ़ की फुहारें उसे बहुत अच्छी लगी। उसके मन में हलकी-सी खुशी की लहर उठी। प्रकृति की इस सुरम्यता' ने उदासी का बादल हटा दिया और वह फिर लिखने लगादादा
दादा जी, मास्को बड़ा शहर है यहाँ बच्चे वायलिन लेकर दिनभर नहीं घूमते।। खाने को सुबह-शाम थोड़ी-सी रोटी मिलती है। रातभर मालिक का बेटा रोता है। वह मुझे सोने नहीं देता। मुझे बार-बार उसका पालना हिलाना पड़ता है। मेरे प्यारे दादा जी! आप मुझे यहाँ से ले जाइए। दादा जी, यहाँ मेरी उमर के बच्चे सुबह-सुबह बस्ते लटकाकर स्कूल जाते हैं। उनकी माँ उन्हें दूर तक जाते हुए देखती हैं
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