अन्य सभी व्यक्तियों से विलक्षण उस जर्जर शरीरवाले वद्ध ृ परुष क ु ो जैसे हीिसद्धार्थ ने देखा, वह चौंका और बड़े ध्यान से उसकी ओर देखने लगा। फिर उसनेअपने सारथी से पछा— “हेू सत, ू यह कौन है? यह कहाँ से आया है? सफ़ेद बालोंवाला यह परुष हाथ में लाु ठी क्यों लिए हुए है? इसकी आँखें भौंहों से कैसे ढँकगर्इं हैं? इसका शरीर क्यों झका ह ु ुआ है? क्या यह कोई विकृति है? या इसकी यहीस्वाभाविक स्थिति है? या यह अनायास ही ऐसा हो गया है?”
“हे राजकुमार! रूप अौर शक्ति का नाश करने वाली यह जरावस्था है; यह बढ़ाप ु ाहै; जिसमें स्मृति का नाश हो जाता है; इद्रिय ं ाँ शिथिल हो जाती हैं; इसी वद्धा ृ वस्थाने इस परुष क ु ो तोड़ दिया है; इसने भी बाल्यावस्था में दधू पिया है; संदर शरीरु प्राप्तकर यौवन का सख भ ु ोगा है और अब कालक्रम से यह बढ़ा ू हो गया है।”
सारथी की बातें सनकर राजक ु ुमार चकित हो गया, क्योंकि उसे इस प्रकार काकोई पर्वू अनभव नहीं था। उ ु सने फिर बढ़ेू की अोर देखा अौर सारथी से पछा— “ू क्यायह दोष मझे भी ह ु ोगा? क्यों, मैं भी बढ़ा ू हो जाऊँ गा?""
” सारथी ने उत्तर दिया— “हाँ,आयष्माु न! समय आने पर आपको भी वद्धा ृ वस्था अवश्य प्राप्त होगी।”