उसी औरत ने, जिसके पति ने कसम खाई थी कि मुगलों को हिंदुस्तान से बाहर खदेड़े बगैर चित्तौड़ में कदम न रखूँगा .....
तो क्या जहाँपनाह ने उनकी प्रार्थना मंज़ूर कर ली है?
अफ़सोस कि तुम इस राखी की कीमत नहीं जानते। छोटे - छोटे दो धागे दुश्मन को भी मुहब्बत की ज़ंजीरों में जकड़ देते हैं। यह मेरी खुशकिस्मती है कि मेवाड़ की बहादुर रानी ने मुझे अपना भाई बनाया है और बहादुरशाह से मेवाड़ की हिफ़ाज़त करने के लिए मेरी मदद चाही है।
वह प्रार्थना नहीं, हुक्म है। राखी आ जाने के बाद भी क्या सोच - विचार किया जा सकता है? यह तो आग में कूद पड़ने का न्योता है। हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि राखी के धागों ने हज़ारों कुरबानियाँ कराई हैं। मैं दुनिया को बता देना चाहता हूँ कि हिंदुओं के रस्मो - रिवाज़ मुसलमानों के लिए भी उतने ही प्यारे हैं। हम हर कीमत पर उनकी हिफ़ाज़त करेंगे ।
राखी हाथ में बाँधते हैं। सब जाते हैं।
एक मुसलमान के ऊपर एक हिंदू को पहले.....
अब सोचने का वक्त नहीं। बहन का रिश्ता दुनिया के सारे सुखों, दौलतों और ताकतों से बढ़कर है। मैं इस रिश्ते की इज़्ज़त रखूँगा । तातार खाँ, हिंदूबेग ! जल्दी फ़ौज तैयार करो। हमें अभी कूच करना है।