एक बडे़ स्तर पर फैलने वाली बीमारी बहुत भयानक रूप से फैली हुई थी
एक दिन सुखिया के पिता ने पाया कि सुखिया का शरीर बुखार से तप रहा था।
बेटी की इच्छा पुनः करने के लिए वह मंदिर गया
'पतित तारिणी पाप हारिणी, माता तेरी जय जय जय।'
मुख्य पात्र अपनी बेटी जिसका नाम सुखिया था, उसको बार-बार बाहर जाने से रोकता था। लेकिन सुखिया उसकी एक न मानती थी और खेलने के लिए बाहर चली जाती थी।जब भी वह अपनी बेटी को बाहर जाते हुए देखता था तो उसका हृदय डर के मारे काँप उठता था
प्रसाद पाकर प्रफुल्लित हुआ पर लोगो की क्रूर दृष्टि से न बच पाया
“अरे यह अछूत मंदिरके भीतर कैसे आ गया? पकड़ो कही यह भाग न जाए।
बच्ची ने अपने पिता से कहा कि वह तो बस देवी माँ के प्रसाद का एक फूल चाहती है ताकि वह ठीक हो जाए।सुखिया के शरीर का अंग-अंग कमजोर हो चूका था।जो बच्ची कभी भी एक जगह शांति से नहीं बैठती थी, वही आज इस तरह न टूटने वाली शांति धारण किए चुपचाप पड़ी हुई थी
हाय !सात दिन की जेल व बेटी की आखरी इच्छा न पूर्ण करने का गम//
पहाड़ की चोटी के ऊपर एक विशाल मंदिर था।विशाल आँगन में कमल के फूल, ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ कोई उत्सव हो। जब वह गया तो वहाँ भक्त देवी माँ की आराधना कर रहे थे। जब पुजारी ने उसे प्रसाद दिया तो पल क ठिठक सा गया।
बेचारा,मूर्ख लोगों के कारण अपनी बेटी का अंतिम संस्कार न कर पाया !!
कह रहे थे कि सुखिया के पिता ने बड़ा अनर्थ कर दिया और मंदिर की पवित्रता को अशुद्ध कर दिया है।पिता ने कहा कि जब माता ने ही मनुष्यों को बनाया है तो उसकेआने से मंदिर अशुद्ध कैसे हो सकता है। बहुत समझाया ,उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ।
लोगों ने घेर लिया घूँसों और लातों की बरसात,उसे नीचे गिरा दिया।न्यायलय लेजाकर उसे सात दिन की सजा सुनायी गयी।वे दिन ऐसे लगे जैसे सदियाँ बीत गईं,आँखें लगातार बरसने के बाद भी बिलकुल नहीं सूखीजब जेल से छूटा तो उसके पैर उसके घर की ओर नहीं उठ रहे थे।
घर पहुँचने पर सुखिया की मौत का पता चला। वह दौड़ता हुआ शमशान पहुँचा जहाँ पहले ही उसकी बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया था। बेटी की बुझी हुई चिता देखकर उसका कलेजा जल उठा। उसकी सुंदर सी कोमल बच्ची राख के ढ़ेर में बदल चुकी थी।